नेतृत्व क्षमता (Netrutv Kshamta) अवधारणा और परिभाषा, एक सफल नेतृत्व बनने के लिए (Netrutva Banane Ke Liye) संगठन की आवश्यक स्थिति है। इनका कारण यह है कि व्यापारिक परिस्थितियाँ निरन्तर परिवर्तनों के अधीन रहती हैं,
अतः इन परिवर्तनीय स्थितियों के अन्तर्गत प्रभावी नियंत्रण स्थापित करने के लिए उपयुक्त नेतृत्व का होना नितान्त आवश्यक होता है क्योंकि एक कुशल नेतृत्व ही किसी व्यावसायिक अथवा औद्योगिक उपक्रम को अंधेरे से उजाले में ले जाने का प्रयास करता है और समय-समय पर होने वाली कठिनाईयों पर विजय प्राप्त करते हुए उसे प्रगति के मार्ग पर आगे ले जाता है।
नेतृत्व क्षमता (Netrutv Kshamta)
नेतृत्व वह विशेषता है जिसे सभी पहचानते हैं। परन्तु बहुत कम ही इसकी सही परिभाषा कर सकते हैं। सबसे अच्छी और सर्वमान्य परिभाषा (Definition) है, “लोगों के द्वारा परिणाम प्राप्त करना नेतृत्व कहलाता है।” दूसरे शब्दों में, यह लक्ष्य प्राप्ति के लिए लोगों का प्रबन्धन होता है।
इसमें नेता, लोग और लक्ष्य तीनों ही शामिल होते हैं। इसलिए यह लोगों को प्रभावित करने की कला है जिसके परिणामस्वरूप वे स्वेच्छा से और पूरी लगन से संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए (lakshyon kee praapti ke lie) काम करते हैं। नेतृत्व वह सम्बन्ध है जिसमें एक व्यक्ति या नेता दूसरे लोगों को स्वेच्छा से लक्ष्य प्राप्ति से जुड़े कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है। नेतृत्व लोगों के द्वारा परिणाम प्राप्त करना है।
नेतृत्व की आवश्यकता (Netrtv ki Aavashyakata) निम्न कारणों के लिए होती है
- समूह के कार्यों के संचालन और सुधार के लिए
- सामूहिक कार्यों को उचित क्रम में लाने के लिए
- समूह के आपसी सम्बन्धों को स्थापित करने के लिए
- समूह / उद्यम की ऊँचाई पर ले जाने के लिए,
- प्रारम्भिक कदम उठाने के लिए
- नीतिपूर्ण दिशाबद्धता समूह को देने के लिए
- समूह के दृष्टिकोण को बताने और समझने के लिए।
नेतृत्व से आशय (Netrutva Se Aashay)
नेतृत्व से आशय व्यक्तियों के उस गुण से है जिनके आधार पर वह अन्य व्यक्तियों का उचित मार्गदर्शन करता हैं और उनके क्रियाओं को संचालित करता है। सामान्यता नेतृत्व वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने अनुयायियों से अपने मनमुताबिक कार्य कराने और उनको मार्गदर्शन करती है।
Definition of Leadership
नेतृत्व का वास्तव में क्या आशय है, इस बात पर। लोग एक मत नहीं हैं। कुछ लोग इसका आशय संगठन क्रम में एक विशिष्ट पद या स्थिति से लगाते हैं कुछ लोग व्यक्तिगत
विशेषताओं के आधार पर नेतृत्व को परिभाषित (Netrutva Ko Paribhasit) करते हैं कुछ लोग एक विशिष्ट व्यवहार को जो अन्य लोगों को प्रभावित करता है, नेतृत्व गुण (Netrutv Gud) मानते हैं। नेतृत्व की विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गयी निम्न परिभाषाएँ इस तथ्य की पुष्टि करती हैं
1-मूने तथा रेले के अनुसार (According to Mooney and Rayleigh) : “प्रक्रिया में प्रवेश करने पर अधिकारी वर्ग जो स्वरूप धारण करता है, नेतृत्व कहलाता है।”
2-एल्विन गोल्डनर के अनुसार (According to Alvin Goldner) : ” नेता एक समूह का सदस्य होता है जिसे एक निश्चित पद प्रदान किया जाता है और वह प्राप्त पद के अनुरूप व्यवहार प्रदर्शित करता
3-रॉबर्ट सी. एप्लेबी के अनुसार (According to Robert C. Appleby) : “नेतृत्व निर्देशन का साधन है, अधीनस्थों को विश्वास एवं इच्छा पूर्वक समूह आदर्शों के लिए कार्य को प्रेरित करने की योग्यता है।”
4-आर्डवे टीड के अनुसार (According to Ardway Teed) : “नेतृत्व गुणों का ऐसा संयोजन है जिसके होने से एक व्यक्ति दूसरों से कार्य करा पाने के योग्य हो जाता है, क्योंकि उसके प्रभाव के अन्तर्गत वे ऐसा करने के इच्छुक होते हैं।”
नेतृत्व की परिभाषा (Netrtv ki Paribhaasha)
5-एलन के अनुसार (According to allen) : “नेता वह है जो दूसरे व्यक्तियों का मार्गदर्शन करता है और” निर्देशित करता है। उसे अपने प्रयास, निर्देशन तथा उद्देश्य प्रदान करने चाहिए। “
6-जार्ज आर. टेरी के अनुसार (George R. according to terry) : ” नेतृत्व लोगों को प्रभावित करने की एक क्रिया है जिससे व पारस्परिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए इच्छापूर्वक प्रयास करते हैं। ‘
7-कून्ट्ज एवं ओ’डोनैल के अनुसार (According to Koontz and O’ Donnell) : “नेतृत्व लोगों को प्रभावित करने की कला या प्रक्रिया है ताकि वे समूह लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में इच्छापूर्वक आगे बढ़े वे उत्सुकता और विश्वास के साथ।”
8-अल्फोर्ड तथा बीटी का मत है (The opinion of Alford and Beatty is) : ” नेतृत्व वह योग्यता है, जिसके द्वारा अनुयायियों है के एक समूह से वांछित कार्य स्वैच्छिक तथा बिना किसी दबाव के कराये जाते हैं। ‘
नेतृत्व की अवधारणा (Netrtv ki Avadharana)
सामान्य अर्थ में, नेतृत्व से आशय व्यक्ति विशेष के उस गुण से है जिसके द्वारा वह अन्य व्यक्तियों या अधीनस्थो का मार्गदर्शन करता है। यह एक अन्तर्वैयक्तिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रबन्धक निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए (Lakshyon ko praapt karane ke Lie) कार्यरत व्यक्तियों को प्रभावित करता है। नेतृत्व के द्वारा कर्मचारियो के
कार्य निष्पादन के लिए स्वैच्छिक अनुगामी व्यवहार उत्पन्न किया जाता है। यह दूसरो को ‘ प्रभावित करने तथा उन्हें स्वेच्छापूर्वक कार्य करने के लिए तत्पर करने का व्यवहारवादी गुड़ है।
एक अच्छे नेता को होना चाहिए, नेता वह है जो
राह जानता है, राह दिखाता है और राह करता है, निडर / हिम्मतवाला, समर्पित, ईमानदार, निष्पक्ष, भागीदारी करने वाला, दृष्टिकोण करने वाला, नम्र, स्फूर्तिवान, शक्ति से भरपूर।
एक अच्छे नेता को हमेशा अपने समूह के लाभों को अपने से पहले रखना चाहिए। नेता में होना चाहिए: एक उद्देश्य, अच्छी संचारण क्षमता, हमेशा सकारात्मक सोच॥
नेतृत्व के लक्षण (Netrtv Ke Lakshan)
प्रभावी नेतृत्व के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित होते हैं:
1-अनुयायियों का होना (Anuyayiyon Ka Hona) -अनुयायियों के अभाव में नेतृत्व की कल्पना तक नहीं की जा सकती है, अतः नेता के साथ-साथ उसके अनुयायियों का भी होना नितान्त आवश्यक होता है। जितने अधिक अनुयायी होंगे, नेता का महत्त्व उतना ही अधिक होगा।
2-गतिशील प्रक्रिया (Gatisheel Prakriya) -प्रत्येक संगठन में नेतृत्व की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। संस्थान की स्थापना से लेकर जब तक संस्थान विद्यमान रहता है तब तक नेतृत्व की प्रक्रिया चलती रहती है।
3-आदर्श आचरण नेता (Aadarsh Aacharan Neta) -अपने आचरण द्वारा अपने अनुयायियों के समक्ष एक प्रस्तुत करता है। उनके अनुयायी यह चाहते है कि उनका नेता केवल नेता ही न रहकर एक आदर्श पुरुष भी हो, ताकि उसका अनुसरण कर सकें।
4-क्रियाशील सम्बन्ध (Kriyasheel Sambandh) -नेता तथा उसके अनुयायियों का पारस्परिक सम्बन्ध निष्क्रिय न होकर क्रियाशील होता है। किसी कार्य का निष्पादन करने में नेता सबसे आगे खड़ा होकर अपने अनुयायियों का मार्गदर्शन करता है।
5-हितों की एकता (Hitoin ki Ekta) –नेता तथा उसके अनुयायियों के हितों में एकता होती है। नेतृत्व उस समय प्रभावहीन हो जाता है जबकि नेता तथा उसके अनुयायी पृथक्-पृथक् उद्देश्यों के लिए कार्य करते हैं।
6-परिस्थितियों का ध्यान (Paristhitiyon Ka Dhyan) –नेतृत्व बहुत परिस्थितियों एवं वातावरण पर निर्भर है। हो सकता है कि एक व्यक्ति अमुक परिस्थिति में तो सफलता प्राप्त करे और अमुक में नहीं।
7-आत्मबोध (AtmaBodh) -नेतृत्व के इस लक्षण के अनुसार नेता को स्वयं के विषय में भ्रान्ति नहीं होनी चाहिए। उसे अपनी शक्तियों एवं दुबलताओं का सही-सही ज्ञान होना चाहिए।
8-यथार्थवादी दृष्टिकोण (Yatharthvadi Drishtikon) -नेतृत्व में इस अन्तिम लक्षण के अनुसार उसका मानव आचरण के प्रति यथार्थवादी दृष्टिकोण होना चाहिए।
नेतृत्व के प्रकार (Netritva ke Prakar)
व्यावसायिक एवं औद्योगिक उपक्रमों में जाये जाने वाले नेतृत्वों को उसकी प्रकृति के अनुसार निम्नलिखित भागों में विभक्त किया जा सकता है-
1-जनतन्त्रीय नेता (Janatantreey Neta) : जनतंत्र नेता वह है जोकि अपने समूह से परामर्श तथा नीतियों एवं विधियों के निर्धारण में उनके योगदान से कार्य करता है। यह वही करता है जो उसका समूह चाहता है।
2-निरंकुश नेता (Nirankush Neta) : ऐसा नेता समस्त अधिकार एवं निर्णय को स्वयं अपने में केन्द्रित कर लेता है। उसका विश्वास है कि लोग प्रायः आलसी होते हैं,
उत्तरदायित्व लेना नहीं चाहते और जो कहा जाये वही करने से सन्तोष अनुभव करते हैं। अतः वह समस्त निर्णय एवं सारी योजनाएँ बनाता है, अपने अधीनस्थों को क्या करना है यह निर्देश देता है।
3-निर्बाधवाद नेता (Nirbaadhavaad Neta) : यह वह नेता है जो अपने समूह को अधिकतर अपने भरोसे छोड़ देता हैं। समूह के सदस्य स्वयं अपने लक्ष्य निर्धारित करते और अपनी समस्याओं को सुलझाते हैं। वह स्वयं को प्रशिक्षित ही नहीं करते बल्कि अभिप्रेरित भी करते हैं।
4-संस्थात्मक नेता (Sansthaatmak Neta) : यह वह नेता है जिसे अपने पद के प्रभाव से उच्च स्थिति प्राप्त होती है फलतः वह अपने अनुयायियों को प्रभावित करने की स्थिति में होता है।
5-व्यक्तिगत नेता (Vyaktigat Neta) : व्यक्तिगत नेतृत्व की स्थापना व्यक्ति सम्बन्धों के आधार पर होती है। ऐसा नेता किसी कार्य के निष्पादन के सम्बन्ध में निर्देश एवं
अभिप्रेरणा स्वयं अपने मुख द्वारा अथवा व्यक्तिगत रूप में देता है। इस प्रकार का नेता अपेक्षाकृत अधिक प्रभावी होता है, क्योंकि अनुयायियों से इसका निजी एवं सीधा सम्बन्ध रहता है।
6-अव्यक्तिगत नेता (abhivyaktigat neta) :-व्यक्तिगत नेतृत्व की स्थापना प्रत्यक्ष रूप से नेताओं अथवा उप-नेताओं के अधीन कर्मचारियों के माध्यम से होती है। इसमें मौखिक
बातों के स्थान पर लिखित बातें होती हैं, अतः समस्त, निर्देश, आदेश, नीतियाँ, योजनाएँ तथा कार्यक्रम लिखित होते हैं। ऐसे उपक्रमों में जहाँ कि कर्मचारियों की संख्या अत्यधिक होने के कारण नेता का व्यक्तिगत सम्बन्ध स्थापित करना कठिन होता है, अव्यक्तिगत नेतृत्व लोकप्रिय होता है।
7-क्रियात्मक नेता (Kriyatmak Neta) : क्रियात्मक नेता वह होता है जो अपनी योग्यता, कुशलता, अनुभव एवं ज्ञान के आधार पर अपने अनुयायियों का विश्वास प्राप्त करता है एवं उनका मार्गदर्शन करता है।
नेतृत्व के कार्य (Netrutv Ke Karya)
सामान्य रूप से नेतृत्व के निम्न कार्य माने जाते हैं।
1-नियोजन एवं निर्देशन (Niyojan Avm Nirdeshan) :–नेतृत्व का प्रथम कार्य है कार्य का नियोजन तथा समूह सदस्यों का लक्ष्य प्राप्ति की ओर निर्देशन। समूह का नेता समूह के प्रतिनिधि के रूप में उच्च स्तरीय बैठकों में भाग लेता है तथा उपक्रम के लक्ष्य एवं नीतियाँ निर्धारित करने में सहयोग करता है। इसके उपरान्त वह उन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सदस्यों का मार्गदर्शन करता है।
2-अभिप्रेरणा का समन्वय (Abhiprerna Ka Sambandh) :-नेतृत्व का दूसरा कार्य है समूह सदस्यों को क्षमतानुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करना, तथा उनके कार्य में समन्वय उत्पन्न कर लक्ष्य को प्राप्त करना।
3-सूचनायें व तकनीकी (Suchna AVN technique) सहायता प्रदान करना:-नेतृत्व का यह कार्य है कि वह समूह के सदस्यों को उनके कार्य तथा हितों से सम्बन्धित सूचनायें प्रेषित करता है तथा उन्हें कार्य करते समय कठिनाई उत्पन्न होने पर तकनीकी तथा अन्य प्रकार की सहायता प्रदान करता है।
4-पुरस्कार व दण्ड की व्यवस्था (Puraskar Aur Dand Vyavastha) करना:-नेतृत्व अपने समूह सदस्यों के लिए पुरस्कार व दण्ड की व्यवस्था करता है। वह अच्छा कार्य करने वालों को पुरस्कार तथा अक्षम या गलत कार्य करने वालों को दण्ड देता है अथवा उच्च प्रबंध को इस सम्बन्ध में सिफारिश करता है। नेता को ही अपने समूह सदस्यों के मनोभावों का ठीक पता रहता है कि किस प्रकार का पुरस्कार उन्हें अच्छा कार्य करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
नेतृत्व के कार्य (Netrutv Ke Karya)
5-स्वास्थ्यप्रद वातावरण (Swasthyaprad Vatavaran) का निर्माण:-एक उपक्रम में संगठनात्मक वातावरण का कर्मचारियों के कार्य पर भारी प्रभाव पड़ता है। नेता का यह कार्य है कि वह अपने विभाग में ऐसे स्वस्थ व का निर्माण करे जिससे कर्मचारी इच्छापूर्वक तथा प्रसन्नता के साथ कार्य करने के लिए प्रेरित हों। कर्मचारियों के मध्य व्याप्त आपस मनमुटाव तथा कटुताओं को दूर करने का प्रयास भी नेता को करना चाहिए अन्यथा इनके कार्य से वातावरण दूषित होता है।
6-सदस्यों की प्रोन्नति (Sadasyo ki Unnati) तथा विकास:-नेतृत्व का यह महत्त्वपूर्ण कार्य है कि वह अपने समूह सदस्यों की आकांक्षाओं तथा इच्छाओं को समझे और उन्हें सन्तुष्ट करने में योगदान दे। सदस्यों को आगे बढ़ने और विकास करने के लिए अवसर प्रदान करे।
7-अधीनस्थों का सहयोग प्राप्त करना (Sahyog Prapt Karna) : नेता को चाहिए कि वह नेतृत्व की ऐसी शैली अपनाये जो उसे अधीनस्थों का पूर्ण सहयोग प्रदान कर सके। इस दृष्टि से वह जनतांत्रिक दृष्टिकोण अपना सकता है जिसमें समय-समय पर समस्याओं के समाधान हेतु कर्मचारियों का परामर्श प्राप्त किया जा सकता है और प्रबन्धकीय निर्णयों में उन्हें सहभागीदार बनाया जा सकता है।
8-आदर्श प्रस्तुत करना (Adarsh prastut karna) :–नेतृत्व निष्पक्ष, निस्वार्थी, योग्य व साहसी होना चाहिए। नेतृत्व को समूह के सदस्यों के सामने अपने व्यवहार व आचरण से ऐसे आदर्श प्रस्तुत करने चाहिए जैसे वह अपने अनुयायियों से अपेक्षा रखता है। आचरण द्वारा आदर्शों का प्रस्तुतीकरण नेतृत्व को प्रभावशाली बनाने का एकमात्र अचूक शस्त्र है।
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